श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय  2  रा  ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम  :।  श्री  सरस्वत्यै  नम  :।  श्री  गुरूभ्यो  नम  :।  श्री  गजानना  श्रीगणपती  ।  सकळ  सृष्टिचा  तूचि  अधिपती  ।  अज्ञान  तिमिर  क्षणाप्रती  ।  तव  कृपे  नाश  पावे  ॥1  ॥  वंदन  श्री  शारदे  सरस्वती  ।  सकळ  सृष्टिची  विद्यादाती  ।साहाय्य  करावे  कन्येप्रती  ।  श्रीगुरूचरित्र  लिहिण्यास  ॥2  ॥  तव  शुभआशिर्वादे  करून  ।  विजयी  होईल  माझे  जीवन  ।  करी  गे  विद्यामृत  पान । कृपाह्ष्टीने  कन्येशी॥  3॥  जय  श्री  तुळजाभवानी  ।  देशपांडे  कुलाची  कुलस्वामिनी।  कृपाह्ष्टीने  कन्येलागोनी  ।  साहाय्य  करी  गे  ग्रंथास  ॥4  ॥हीच  आहे  अंतरी  आस  ।  नको  निष्ठूर  होउस  ।  मार्गदर्शना  कन्येस।  सदोदीत  असावे  ॥  5  ॥तू  महाराष्ट्राची   भवानी  ।  शिवरायाची  राज्यजननी  ।  भूतलवासी  जगत्जननी  ।शिवशति  आदिमाये  ॥6  ॥  कुळकर्णी  कुलाची  कुलस्वामिनी  ।  माहुरगड  निवासिनी  ।  नतमस्तक  तव  चरणी।  वरदहस्त  असू  दे  ॥  7  ॥  धन्य  धन्य  विदर्भ  प्रांत  ।बुलढाणा  जिल्हा  त्यात  प्रख्यात  ।माळघाट  म्हणती  तयास  ।  पहाडी  विभाग  वनशोभा  ॥  8  ॥  बुलढाणा  जिल्हयामाझारी  ।  चिखली  तालूका  खरोखरी  ।  पांगरी  ग्रामस्थ  कुळकर्णी  यांचे  घरी  ।  गुरू  अवतरले  नरजन्मी  ॥  9  ॥  पापवासना  दूराचारी  ।मानवा  गोडी  अत्याचारी  ।  अहंकारे  बुडतो  भवसागरी  ।कलियुगी  धर्मक्षय  ॥  10  ॥  ज्या  ज्या  वेळी  धर्मनाश  ।  बघवेना  श्रीविष्णुस  ।  अवतरोनी  भूमिवर  ।  धर्मरक्षण  करीतसे  ॥  11  ॥  धन्य  धन्य  हो  श्रीराम  जननी  ।  उदरी  अवतरले  यतीराज  सदनी  ।  अनेक  जन्मांचे  सुकृत  म्हणूनी  ।  चरण  भक्ता  दाखविले  ॥12॥  श्री  कुलकर्णी  यांचा  वंशवृक्ष  ।  प्रफु  ला  कलियुगात  ।  जगदोध्दारक  श्री  गुरूनाथ  ।  मानव  योनी  प्रकट  ले  ॥  13  ॥  कुलकर्णी  कुलाची  वंशवरी  ।  कैसी  वाढली  आजवरी  ।  त्याचा  इतिहास  विस्तारी  ।  श्रवण  करा  श्रोते  हो  ॥  14  ॥  मूळ  पूरूष  त्र्यंबकपंत  कुळकर्णी  ।  वट  वृक्षाचे  बीज  थोरी  ।  त्यांचे  उपनाम  प्रचारी  ।  भालेराव  असे  देखा  ॥  15  ॥  किनगावराजा  प्रख्यात  ।  आहे  मेहकर  तालूयात  ।  जाधव  राजे  राज्य  करित  ।  त्यांच्या  पदरी  दिवाण  होते  ॥  16  ॥  नातू  त्र्यंबकपंतांचा  ।  माधव  नामे  होता  साचा  ।  वारसा  दिवाण  पदाचा  ।  जाधव  राजे  दिला  असे  ॥  17  ॥  यांनी  आजोबांच्या  पश्चात  ।  दिवाणपणाचे  काम  ।  जाधवांचे  पदरी  चालविले  ।  काही  दिवस  पर्यंत  ॥  18  ॥  सुखर्दुखाचा  असे  फे  रा  ।  कोणी  न  सुटे  भलाबुरा  ।  रंक  असो  वा  राव  खरा  ।  नियती  त्यास  खेळविते  ॥  19  ॥  जो  बालरवि  मानवा  जागवी  ।  तोच  माध्यान्हकाळी  तापवी  ।  तोच  सायंकाळी  शांतवी  ।  त्रिकालाबाधित  सत्य  हे  ॥20॥  माझे  माझे  म्हणवितो  ।  जेथीचे  तेथेच  सोडतो  ।  मायाडोही  बुडवून  घेतो  ।  मानव  प्राणी  आपण  ॥21॥  लक्ष  र्चौंयाऐंशी  योनी  फि  रूनी  ।  जन्मा  येतो  मानवप्राणी  ।  भवचक्राच्या  फे र् या  फि  रूनी  ।  अंती  शोधतो  सत्याला  ॥  22  ॥  पूर्वसुकृताप्रमाणे  ।  भोग  भोगावे  आनंदाने  ।  जन्म  घ्यावेत  दैवाने  ।  कालगती  श्रेष्ठ   असे  ॥  23  ॥  शके  1800  च्या  सुमारास  ।  जाधवांच्या  वैभवास  ।  ओहोटी  लागली  झाला र् हास  ।  कालगती  असेचि  हे  ॥  24  ॥  परी  त्यांच्या  ओहोटीत  ।  लपला  होता  कुळकर्णी  यांचा  माणिक  ।  हे  जाणण्या  त्या  काळात  ।  कोणीच  पारखी  दिसेना  ॥  25  ॥  हा  आहे  कलिचा  महिमा  ।  मानव  मानवा  ओळखेना  ।  परंतु  जगचालक  योगिराणा  ।  गुप्तरूपे  राज्य  करी  ॥  26  ॥  वडिलोपार्जीत  पांडे  पणाचे  ।वतनदारीच्या  हकाचे  ।  गांव  पांगरी  कुळकर्णी  यांचे  ।  जाफ्र  ाबाद  परगण्यांत  ॥  27  ॥  माधवराव  सहपरिवारी  ।  स्थिर  झाले  पांगरी  स्थली  ।  गुरूकृपेने  सत्वरी  ।  भरभराटीस  पावले  ॥  28  ॥  जमीन  जुमला  मिळविला  ।  वाडा  गावांत  बांधला  ।  अघटित  आहे  गुरूलीला  ।  वर्णण्या  आहे  अपात्र  मी  ॥  29  ॥  माधवरावांचे  पिता  मुकुंदपंत  ।  मुकुंदपंतांचे  बंधु  सिदोपंत  ।  त्यांना  नव्हते  संतान  ।  वंशवृक्ष  खुंटला  ॥  30  ॥    मुकुंदपंतांना  चार  सुत  ।  रामकृष्ण  माधव  गोविंद  गजानन  ।  क्रमवार  त्यांचे  नामाभिधान  ।  ऐका  श्रोते  सावधान  ॥  31  ॥  फ  ळे  वृक्षालागून  ।लागती  जरी  असंख्य  ।  परी  त्यांतून  ठराविक  ।  परिपव  होती  सारभूत  ॥  32  ॥  रामकृष्ण  गजाननाचा  ।  वंश  नाही  वाढला  साचा।  माधव  आणि  गोविंदाचा।  वंश  वाढला  गुरूकृपे  ॥  33॥गोविंदपंतांचे  उदरी।अवतरले  योगिराज  भूवरी।  रामचंद्र  नाम  अवतारी।  पुरूष  होते  कारणीक॥  34।  रामचंद्र  विभूती  थोरी।  कुळकर्णी  कुळा  उध्दारी।क्त  स्वतेजे  व्यवस्था  करी।  दत्तावतार  घडवावया॥  35॥  चारीधाम  करूनी  आले।  केकतपुरा  स्थिरावले।  दत्तमठ  स्थापिले।  योगी  जगावेगळा॥  36॥यांचे  आज्ञेवरून।केकतपुर  देशमुखालागुन।  पांगरीकरांनी  कन्या  देऊन।शरीरसंबंध  जुळविला  ॥37॥रामचंद्रांनी  केलीक्त।कुळकर्णी  कुळाची  उध्दारणी।सप्त  कुला  उध्दरोनी।धन्य  धन्य  माऊली॥  38॥चतुर्थावतारी।नारायणाच्या  उदरी।त्रयमुर्ति  अवतरली  गोजिरी।  जगदोध्दार  करावया॥  39॥  तोचि  कर्ता  करविता।जगी  श्रेष्ठ  जग्तपिता ।  मज  पामरा  करूनी  निमित्ता । चरित्र  लिहवुन  घेतसे  ॥  40॥फळासी  आले  सुकृत।  सेवा  मिळाली  उत्कृष्ट।  गुरूचरणी  होऊनी  लीन।माथा  चरणी ठेवितसे॥  41॥  कृपाळू  तुम्ही  संतजन ।स हाय्य  करणे  सत्कृत्यास ।  गुरूचरित्र  कथण्यास  आशिर्वाद  वर्षावे॥42॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र  मधुर।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।विनवी  दासी  अखंड।द्वितीयोध्याय  गोड  हा॥43॥ 


॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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