श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 22  वा ॥

॥  श्रीगणेशाय  नम  :  ॥  श्रीसरस्वत्यै  नम  :  ॥  श्रीगुरूभ्यो  नम  :  ॥  जय  जय  श्री  जगवीसाथा।  भवाब्धितारका  भक्तत्राता।  उध्दरी  भवसागरी  बापा।  सहाय्य  करी  भक्तजना  ॥  1  ॥  औदुंबरतळी  राहुनी  गुप्त।  अवतारकार्य  करिसी  नित्य।  शरणागत  तरती  असंख्य।  तव  कृपाप्रसादे  ॥  2  ॥  गुरू  गुरू  गुरू।  स्तवावे  निशिदिनी  निरंतरू।  काय  उणे  पामरू।  तरूनी  जाण्या  भवसागरू  ॥  3  ॥  निष्काम  भक्ति  जगी।  सर्वश्रेष्=  कलियुगी।  अखंड  अविरत  =ेवावी।  नितांत  श्रध्दा  गुरूचरणी  ॥  4  ॥  गुरूअवतार  या  जगती।  पुण्यवाना  मार्गदर्शनाप्रती।  सदैव  वर्तते  न्यायनिती।  उपनिषदाप्रमाणे  ॥  5  ॥  प्राचीन  कालापासोनी।  थोर  तपस्वी  ॠषीमुनी।  गुरूच  आद्यदैवत  मानुनी।  गुरूसेवा  नित्य  करिती  ॥  6  ॥  काय  वदती  थोर  वेदांत।  उपनिषदादिक  ग्रंथ।  व्यर्थ  आहे  ज्ञानाभ्यास।  गुरूविणा  श्रेय  नसे  ॥  7  ॥  गुरूकृपेचे  महिमान।  थोर  आहे  जगतिजाण।  अह्ष्यरूपे  गुरूराया।  सांभाळिती  जगतास  ॥  8  ॥  ईरीमाया  अगाध।  जागृत  आहे  जगी  आज।  भाविक  भक्त  सद्गुरूस।  ओळखती  सत्यरूपा  ॥  9  ॥  काय  वदती  सद्गुरूनाथ।  अखंड  आम्ही  जागृत।  जनकार्या  अविरत।  भ्रमण  आमचे  त्रिलोकी  ॥  10  ॥  भक्तरक्षणार्थ  जगती।  कैसे  कैसे  कार्य  करिती।  यांचे  वर्णन  योग्यरिती।  सद्गुरूच  वदती  निजमुखे  ॥  11  ॥  ते  वचन  त्रिवार।  सत्य  सत्य  थोर।  अढळ  श्रध्दा  निरंतर।  =ेवा  सृजन  श्रोते  हो  ॥  12  ॥  त्रिकालाबाधित  सत्य।  मानावे  गुरूवचन  सत्य।  ऐर्य  सुखसमृध्दी।  जीवनी  तुम्ही  मिळवाल  ॥  13  ॥  त्या  सुखाची  सत्यता।  अनुभवीच  ओळखिता।  परीक्षेविण  गुरूदत्ता।  आश्रय  चरणी  न  मिळे  हो  ॥  14  ॥  याचे  काही  अनुभव  हो।  गुरूकृपे  अभिनव।  गुरूआशिर्वादे  भक्तास्तव।  आनंद  कैसा  मिळतसे  ॥  15  ॥  याचे  सविस्तर  वर्णन।  गुरूआज्ञा  घेवून।  शिष्य  करिती  अनुभवकथन।  परिसा  श्रोते  सावचित  ॥  16  ॥  ऐसे  ऐकिले  पुराणी।  गतजन्मीच्या  सुकृतानी।  वेळ  येता  त्वरीत  झणी।  भक्ता  भेटती  कैवल्यदानी  ॥  17  ॥  श्रीरामचंद्र  सरस्वती।  गुप्तरूपे  अवनीवरती।  कैसे  भेटती  भक्ताप्रती।  त्याचे  वर्णन  परिसावे  ॥18  ॥  भैय्या  सातपूते  नामी।  शिक्षक  बाळापूर  ग्रामी।  पूर्वसुकृत  सत्कर्माने।  भेटती  तयास  सद्गुरू  ॥19  ॥  त्या  भेटीचा  सोहळा।  स्वयेंच  पाहती  आनंदे  डोळा।  अनुभवाविण  आगळा।  परमानन्द  होत  असे  ॥20  ॥  याचा  प्रत्यय  भैय्याजीस।  कैसा  आला  खास।  गुरूकृपे  वदतात।  स्वयेंच  ते  स्वानुभव  ॥  21  ॥  कैसे  असती  थोर  भक्त।  अहंकार  नसे  किंचित।  ज्ञान  असुनी  अज्ञान  म्हणत।  ओळखुनी  म्हणती  न  ओळखत  ॥  22  ॥  गुरू  प्रमाणे  गुप्त  राहुनी।  भैय्याजी  आनंदित  सदनी।  गुरू  उपासना  अंत:करणी।  नित्य  रमती  मानसपूजनी  ॥  23  ॥  कैसा  भैय्याजींचा  अनुभव।  कैसी  भक्ति  आर्तभाव।  गुरू  सहाय्य  असता  निश्चळ।  श्रेष्=  जाणावे  गुरूबळ  ॥  24  ॥  अनादिकालापासोन।  गुरूपरंपरा  चालत।  त्रयमुर्ति  सगुणस्वरूप।  दत्तात्रेय  स्वामी  यती  ॥  25  ॥  रामचंद्रास  उपदेशिती।  अनुग्रह  देण्या  भक्ताप्रती।  पुर्वसुकृते  भेटती।  गुरूवर  भक्तास  ॥26  ॥  स्वप्नात  जाउनी  दत्तयती।  परि  नयनी  न  भक्ता  दिसती।  ध्वनीसंकेत  तेव्हा  येती।  गुरूचरित्र  पारायण  करी  ॥  27  ॥  करिता  अवचित  पारायणाशी।  मन:शांती  लाभली  त्याशी।  स्वयें  बंधुस  घेउनि।  येती  गुरूराज  सदनी  हो  ॥  28  ॥  निमित्तमात्रे  बंधूभेट।  करणे  असे  भक्त  उध्दारास।  देउनि  दर्शन  साक्षात।  कृतकृत्य  केले  असे  ॥29  ॥  भक्तासी  पटली  खूण।  होउनि  या  चरणी  लीन।  गुरूशी  करूणा  भाकित।  तळमळ  अंतरीची  शांतवा  ॥  30  ॥  जय  जय  करूणामुर्ति।  सद्गुरूदत्तस्वरूपी।  प्रकटला  भूमंडळी।  भक्तालागी  रक्षिती  ॥  31  ॥  माझ्या  मनीची  कामना।  देवुनिया  चित्ता  सांत्वना।  पुरवावी  म्हणुनी  दयाघना।  आलो  शरण  तव  चरणा  ॥  32  ॥  ऐकूनी  भक्ताची  वाणी।  गुरू  संतोषले  मनी।  इच्छा  तृप्त  होईल  मनी  ।  काळ  येताची  सानिध्य  ॥  33  ॥  सत्व  पहा  हो  श्रीगुरूंचे।  सगुणस्वरूप  दत्तात्रयांचे।  बदली  करूनी  भक्तासी।  अणियेले  अकोले  ग्रामासी  ॥  34  ॥  भक्त  परमानंदी  लीन  झाला।  ऐसा  प्रताप  वर्णियेला।  गुरूकृपेची  अगम्य  लीला।  अनुभवीच  जाणती  ॥  35  ॥  पाहूनी  शुभ  तिथी  वेळा।  अनुग्रहीत  भक्त  झाला।  भक्तवेल्हाळ  आनंदला।  सार्थक  झाले  जीवनाचे  ॥  36  ॥  गवसले  ते  निधान।  जन्मोजन्मीचे  पुण्य  जाण।  विसरला  मायापाश।  गोत्र  दायाद  आणि  मित्र  ॥  37  ॥  रमू  लागले  चित्त।  गुरूचरणी  स्थिर  भक्त।  काळ  क्रमिता  बहुत।  चालविण्या  जीवनरहाट  ॥  38  ॥  भक्ताशी  देण्या  जाणीव  झणी।  संसारमायेची  उभारणी।  दिधली  विभूति  सद्गुरूंनी।  सेविता  जाणीव  आली  परते  ॥  39  ॥संसार  मायेचे  भरते।  आ=े  लागली  जिवासी।  मुले  आणि  पत्नीची।  विचित्र  माया  पाहूनी  गुरूची  ॥  40  ॥  भ्रमित  झाला  जीव  वेडा।  कैसा  ओढु  प्रपंच  गाडा।  धरीता  झाला  चरण  गुरूंचे।  विनवित  असे  साचे  ॥  41  ॥  हा  आम्हा  तोडिता  आजि।  लोटुनिया  मायापाशी।  हास्य  करिता  गुरूमुर्ति।  काळ  यावयाची  आहे  तिथी  ॥  42  ॥  म्हणूनी  संसारचक्री।  राहणे  बापा  जिवाशी।  शांतविले  भक्ताशी।  देउनिया  आशिर्वचन  ॥  43  ॥  अतृप्त  खळबळ  जीवाची।  तृप्ती  केली  भक्ताची।  इच्छा  उपजली  चित्ता।  अजपाजप  नित्या  ॥  44  ॥  घडवा  देवा  गुरूदत्ता।  इच्छा  पुरवावी  गुरूदेवा।  दर  गुरूवारी  दरबारी।  कोप:यात  बसुनी  अंतरी  ॥  45  ॥  चिंतन  गुरूचरणाचे  करी।  जाणोनिया  भक्तहेत।  काय  वदती  सद्गुरूनाथ।  वृथा  का  कष्टविसी  आम्हास  ॥  46  ॥  एैकुनिया  गुरूवचन।  ते  दिनापासोन।  भक्त  गुरूचरणी  लीन।  मानस  पुजनी  तीन  ॥  47  ॥  गुरूसेवा  व्रत  अखंडित।  घडो  देवा  हाचि  हेत।  गुरूचरणी  रमले  चित्त।  काळ  क्रमित  भक्त  हा  ॥48  ॥  इति  श्रीरामगुरू  चरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनसी  दासी  अखंड।  द्वाविंशतितमोध्याय  गोड  हा  ॥49  ॥

      ॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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