श्री गणेशदत्तगुरूभ्यो नम :
श्रीरामगुरू चरित्र
॥ अध्याय 24 वा ॥
॥ श्रीगणेशाय नम : ॥ श्रीसरस्वत्यै नम : ॥ श्रीगुरूभ्यो नम : ॥ गौरीतनया मोरया। विाधीशा गणराया। सकल विघ्नहर्ता सखया। करीते प्रार्थना गजानना ॥ 1 ॥ तू सकल विद्येचा अधिपती। सुरगण तुज प्रार्थिती। कार्यारंभी तुझी स्तुति। गाती सकलही ॠषिमुनि ॥ 2 ॥ तुझिया कृपेविण बापा। यशकिर्ती नसे लोका। कळीकाळाचे भय होता। विनायका तुज प्रार्थिती ॥ 3 ॥ आद्यगुरू तू असता। वक्रतुंडा गणनाथा। तव कृपेची प्रसवीसता। त्रिभुवनी किर्ती असे ॥ 4 ॥ तुझियां आज्ञेने सरस्वती। प्रसवीसचित्त मानवासी। मोरया तुझी गोजिरी मुर्ति। मूषकवाहन आवडे तुज ॥ 5 ॥ दुर्वाज्ञाुंच्राची आवडी तुज। मोदक नैवेद्यास। रक्त पूष्प शमीदल। आवडती तुज भालचंद्रा ॥ 6 ॥ भक्तिभावे तुजसी आता। प्रार्थिते मी गणनाथा। अनन्यशरण भगवंता। सहाय्य करी बा ग्रंथास ॥ 7 ॥ करूनि वंदन गजानना। पुढील अध्यायी प्रारंभ जाणा। आणिक परिसावे भक्तानुभवा। पूर्वसुकृत पुण्याईने ॥ 8 ॥ भाग्योदयाची लक्षणे। दिसु लागती शिष्याकारणे। गुरूकृपा होई अनुसंधाने। आनंद होई वृध्दिगंत ॥ 9 ॥ गुरूचरणी स्थिर चित्त। वृत्ति होती एकाग्र देख। परी न उमगे गूढ नीट। गुप्तचि सारा पसारा ॥ 10 ॥ कैसा आहे निर्सगनियम। ऊनसाउलीचे भ्रमण। सुखदु:ख मानवा जाण। जीवनचक्र अखंड भ्रमण ॥ 11 ॥ भवचक्राचे फेरे फिरता। सुखदु:ख आपत्ती अनेका। भोग भोगिता जर्जर चित्ता। काहि न सुचे मानवा ॥ 12 ॥ परि गुरूकृपेचे महिमान थोर। गुरूकृपा अथांग फार। गुरूच संरक्षिती निरंतर। गुप्तरूपे स्वशिष्या ॥ 13 ॥ आडमार्गी जाउ न देती। र्धेर्य संकटकाळी देती। प्रतिपाळ मार्गदर्शनाप्रती। त्रयमुर्ति जागृत ॥ 14 ॥ याचे प्रत्यंतर भक्तास। कैसे रक्षिती सद्गुरूनाथ। मधुकरराव कुळकर्णी यांस। अनुभव कैसा आला असे ॥15 ॥ मधुकर दत्तात्रय कुळकर्णी। विद्यावैभवशाली सगुणी। पत्नीपुत्रासहित सदनी। प्रपंचमार्गी सुखे असती ॥ 16 ॥ प्रपंच हा महासागर। अनेक लाटा येती अघोर। दु:खापत्तीचे माहेर। मानवप्राण्या भ्रांत असे ॥ 17 ॥ सत्य सुख ओळखण्या। दिव्य ह्ष्टी पाहीजे प्राण्या। अंतज्र्ञान प्राप्त होण्या। गुरूकृपा पाहिजे ॥ 18 ॥ गुरूकृपामृतसरिता। अखंड वाहे भक्ताकरिता। तृषा शांतवी तृप्त देखा। जल प्रशिता गुरूकृपेचे ॥ 19 ॥ याचा अनुभव मधुकरास। कैसा आला मधुर खास। त्याचे वर्णन सावकाश। गुरूकृपे कथन करू ॥ 20 ॥ दीपक नामे जेष्= सुत। निघुनी जाता आकस्मात। मधुकराचे मानवी चित्त। दु:खे व्याकुळ झाले हो ॥ 21 ॥ जरी ते होते ह्ष्य दु:ख। परी भाग्योदय तेथे गुप्त। त्या निमित्त गुरूस्वरूपास। ओळखणे भाग झाले ॥ 22 ॥ केली शरणागतीने प्रार्थना। द्रव आला सद्गुरूंना। रामचंद्रांनी मधुकरांना। आपत्तीत सरंक्षिले ॥ 23 ॥ पुत्ररक्षणार्थ यतिराज। धावून गेले त्वरीत। धीर देउनी तयास। स्थिर केले संसारी ॥ 24 ॥ ते दिवसापासोनी। प्रिती जडली रामचंद्रचरणी। श्रध्दा भाव भक्तिने। अंतर्मन बहरले ॥ 25 ॥ वाटु लागले मना। अनुग्रह घ्यावा जाणा। धीर करूनिया मना। विनविती सद्गुरूस ॥ 26 ॥ काय वदती रामयति। समयोचित शुभ-दिवशी। अनुग्रहीत व्हाल सुखेशी। चिंता नसावी बा मानसी ॥ 27 ॥ मास होता वैशाख। शुध्द नवमी तिथी देख। प्रात:काळी सुमारे दहास। गुरू अनुग्रह लाभला ॥ 28 ॥ ऐकिले होते ऐसे श्रवणी। काय वदति ॠषिमुनि। योग्य वेळ येता झणी। गुरूप्राप्ति मानवा ॥ 29 ॥ गुरू शोधण्याकारण। न हिंडावे लागे अरण्य। न लागती सायास जाण। चित्ति तळमळ पाहिजे ॥ 30 ॥ पूर्वसुकृत पुण्याईने। गुरूशिष्य भेटी होणे। परि मानवा अज्ञानाने। हे गुह्य कळेचिना ॥ 31 ॥ ह्याचा प्रत्यय मधुकरास। येता झाला सुरेख खास। मनी मानसी नसता देख ।गुरूछत्र लाभले ॥ 32 ॥ भगवान दत्तात्रयांच्या आज्ञेने। श्रीरामचंद्रयती आनंदाने। अनुग्रहीत करिती भक्ता जाण। धन्य भक्त ते जगी ॥ 33 ॥ श्रीरामचंद्राची धन्यता। अनुभवीच जाणती देखा। गृहस्थाश्रमाची योग्यता। पटविती भक्तास क्षणोक्षणा ॥ 34 ॥ स्वये स्वंयभु जागृत जगति। गुप्त रूपे कार्य करिती। अलिप्त राहूनि स्वयेंची। मार्गदर्शन शिष्यांस ॥ 35 ॥ अनुग्रह मिळता मधुकरास। वृत्ति झाल्या स्थिरचित्त। आत्मसुख लाभू लागले अल्प। प्रगती होतसे गुरूकृपे ॥ 36 ॥ आनंद होतो गुरूचरित्र पारायणी। तिर्थक्षेत्र आले फिरूनी। गुरूदर्शना वर्षातुनी। एकदा तरी येत असे ॥ 37 ॥ ऐसा नित्यक्रम जीवनी। आनंद होतो गुरूदर्शनी। दत्तात्रेयांच्या आशिर्वचनी। संसारी सुखे नांदती ॥ 38 ॥ ऐसेच आपुल्या शिष्यास। सदैव सांभाळीत सद्गुरूनाथ। त्रैलोयाधीश यतिराज। अगम्य त्यांचा महिमा असे ॥ 39 ॥ यापुढील कथा। पुढील अध्यायी परिसा। श्रीरामचंद्राची योग्यता। शिष्य कथिती गुरूकृपे ॥ 40 ॥ इति श्रीरामगुरूचरित्र। परिसा रसाळ इक्षुदंड। विनवी दासी अखंड। चर्तुविंशतितमो।ध्याय: गोड हा ॥ 41 ॥
॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
॥अ व धू त चिं त न श्री गु रू दे व द त्त ॥
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