श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 28  वा ॥

॥  श्रीगणेशाय  नम  :  ॥  श्रीसरस्वत्यै  नम  :  ॥  श्रीगुरूभ्यो  नम:।  जय  जय  रामा  करूणाधना।  त्रयमुर्ति  सगुणारामराया  गुरूराणा  ॥1  ॥  तूंचि  मजला  आधार।  विाधीशा  विंभर।  विपति  अविनाशा।  तुझी  कृपा  जगदिशा  ॥  2  ॥  अथांग  आहे  परमेशा।  शिष्य  =ेउनी  भरंवसा।  पैलतीरा  जात  असे।  तरूनिया  भवपाशा  ॥  3  ॥  ऐकता  गुरूसंवाद।  मोद  होई  मना  खास।  बोधप्रद  तो  विवाद।  जीवा  शिकवण  गुप्तरिती  ॥  4  ॥  धन्य  धन्य  माझे  गुरू।  शरणांगता  आधारू  तव  कृपेचा  महिमा  थोरू।  वर्णू  कशी  मी  पामरू  ॥  5  ॥  या  अवतारी  रामचंद्र।  सगुणस्वरूप  यतीवर्य।  अनेकरूपे  जनकार्य।  निरंतर  करितसे  ॥  6  ॥  त्या  कार्याची  तुलना।  न  करता  ये  गणना।  ऐसे  अगणित  भक्तगणा।  कृतार्थ  केले  जीवनी  ॥  7  ॥  जय  जय  श्रीसद्गुरूनाथा।  परमकृपाळू  दयावंता।  अनाथनाथ  भगवंता।  तूच  थोर  त्रिभुवनी  ॥  8  ॥  मानवीजीवन  सुफळ  होण्या।  मार्गदर्शन  पाहिजे  प्राण्या।  नरदेहा  उध्दरण्या।  गुरू  सहाय्य  पाहिजे  ॥  9  ॥  आमुचे  गुरू  महाज्ञानी।  चातुर्यशास्त्र  चिंतामणी।  अनाथनाथा  दिनरजनी।  मार्गदर्शन  करिताती  ॥  10  ॥  गुरूवाय  महामंत्र।  पुनीत  पावन  वेदतंत्र।  गुरूमुखातील  महावाय।  जागृतशक्ति  तो  शब्द  ॥  11  ॥  गुरूमुखे  मिळता  मंत्र।  मंत्रप्रभावे  जिवनतंत्र।  क्षणात  अवधे  दैवीसुत्र।  मार्ग  सुलभ  मिळे  त्या  ॥  12  ॥  मंत्रप्रभाव  शिष्यावरी।  वरदहस्त  भक्तशिरी।  त्या  विभूतिची  अगाधथोरी।  स्वानुभवाविण  ना  कळे  ॥  13  ॥  अनुग्रह  देती  गुरूमुर्ति।  मार्गदर्शन  शिष्या  करिती।  मार्गक्रमण  भक्ताप्रति।  स्वये  करावे  लागते  ॥  14  ॥  कैसी  करावी  साधना।  नियम  व्रत  उपासना।  ते  मार्गदर्शन  गुरूराणा।  गुप्तरूपे  भक्ता  करिती  ॥  15  ॥  साधनामार्ग  गुरू  कथिती।  ती  करावी  लागे  भक्ताप्रति।  गुरू  तयास  योग्य।  जागृती  देती  सदोदीत  ॥  16  ॥  गुरू  शिष्यास  करिती  साकार।  योग्यरिती  निरंतर।  मात्र  शिष्यास  निरंतर।  कष्ट  व्यथा  विघ्ने  फार  ॥  17  ॥  सांभाळूनि  मनाचा  तोल।  धारिष्टय  सबळ  असो  द्यावे।  जीवनी  परिक्षा  अनमोल।  उत्तीर्ण  होणे  भाग  असे  ॥  18  ॥  गुरूउपदेशा  नंतर।  साकार  रूप  भक्त  थोर।  सत्याचरण  सत्कर्म।  सद्विवेक  बुध्दि  जाण  ॥  19  ॥  सुविचारा  सबळस्थान।  गुरूकृपेने  होत  असे।  अनुग्रहिताचा  जीवनक्रम।  सहजसुलभ  आनंदपूर्ण  ॥  20  ॥  सत्य  सत्य  हे  शास्त्रवचन।  मार्गदर्शना  गुरू  सगुण।  भक्तीभाव  आचरण।  गुरूचरणी  श्रध्दापूर्ण  ॥  21  ॥  सद्गति  त्या  शिष्याप्रत।  आदेशाचे  पालन  करीत।  जिवनक्रम  सुलभ  नित्य।  शिष्य  सुखी  जीवनी  ॥  22  ॥  गुरूआज्ञेचे  उंघन।  न  करावे  कदापि  जाण।  गुरूआज्ञा  भंग  पातकाने।  अधोगति  शिष्यास  ॥23  ॥  म्हणुनि  जीवनी  सावध।  नित्य  असावे  सेवारत।  नम्रभाव  सदोदीत।  वचनी  श्रध्दा  असावी  ॥  24  ॥  गुरू  शिरावरी  शिष्यभार।  सद्गतीस  जबाबदार।  नैतिकरिती  व्यवहार।  गुरूशिष्य  परंपरा  ॥  25  ॥  गुरूआज्ञेची  प्रतारणा।  शिष्य  स्वकर्मे  जाणा।  अधोगतीस  दिनवाणा।  प्राप्त  होई  कर्मयोगे  ॥  26  ॥  ह्याचा  दोष  नव्हे  गुरूस।  गुरू  नव्हे  वाहन  खास।  गुरू  मार्गदर्शक  सत्य।  शिष्ये  मार्ग  चुकू  नये  ॥  27  ॥  माझे  सद्गुरू  श्रीराम।  भक्तजीवा  आराम।  सर्वसुखाचे  शांतीधाम।  अवतरले  कलियुगी  ॥  28  ॥  गुरूसत्ता  अगाध  थोर।  तरूनी  जाण्या  भवसागर।  सुकाणुसहीत  नौका  सुकर।  मानवप्राण्या  संसारी  ॥  29  ॥  जय  जय  श्रीसद्गुरूनाथा।  परम  कृपाळू  दयावंता।  अनाथनाथा  भगवंता।  तूच  थोर  त्रिभुवनी  ॥  30  ॥  राम  गुप्त  राहूनि  अवनी।  सांभाळी  भक्त  दिनरजनी।  कर्तव्य  श्रेष्=  ध्येय  जिवनी।  शिकवण  भक्ता  अनमोल  ॥  31  ॥  मार्ग  क्रमता  भक्तराज।  त्यास  रक्षिती  सद्गुरूनाथ।  ते  कार्य  नित्य  रोज।  अखंड  करिती  गुरूनाथ  ॥  32  ॥  संत  दयेचे  सागर।  प्रेमामृत  निरंतर।  प्राशविता  भक्ता  थोर।  पुर्नजन्म  नसे  तया  ॥  33  ॥  यापुढिल  अध्यायी।  यज्ञयागाची  महति  पाही।  कथन  करिती  गुरूआई।  श्रवण  करावे  लवलाही  ॥  34  ॥  सकल  जनांच्या  कल्याणा।  नित्य  जागृत  योगीराणा।  सद्बुध्दि  सतप्रेरणा।  सकल  सृजना  देत  असे  ॥  35  ॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनवी  दासी  अखंड।  अष्टविंशो।ध्याय:  गोड  हा  ॥  37  ॥

      ॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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