श्री गणेशदत्तगुरूभ्यो नम :
श्रीरामगुरू चरित्र
॥ अध्याय 28 वा ॥
॥ श्रीगणेशाय नम : ॥ श्रीसरस्वत्यै नम : ॥ श्रीगुरूभ्यो नम:। जय जय रामा करूणाधना। त्रयमुर्ति सगुणारामराया गुरूराणा ॥1 ॥ तूंचि मजला आधार। विाधीशा विंभर। विपति अविनाशा। तुझी कृपा जगदिशा ॥ 2 ॥ अथांग आहे परमेशा। शिष्य =ेउनी भरंवसा। पैलतीरा जात असे। तरूनिया भवपाशा ॥ 3 ॥ ऐकता गुरूसंवाद। मोद होई मना खास। बोधप्रद तो विवाद। जीवा शिकवण गुप्तरिती ॥ 4 ॥ धन्य धन्य माझे गुरू। शरणांगता आधारू तव कृपेचा महिमा थोरू। वर्णू कशी मी पामरू ॥ 5 ॥ या अवतारी रामचंद्र। सगुणस्वरूप यतीवर्य। अनेकरूपे जनकार्य। निरंतर करितसे ॥ 6 ॥ त्या कार्याची तुलना। न करता ये गणना। ऐसे अगणित भक्तगणा। कृतार्थ केले जीवनी ॥ 7 ॥ जय जय श्रीसद्गुरूनाथा। परमकृपाळू दयावंता। अनाथनाथ भगवंता। तूच थोर त्रिभुवनी ॥ 8 ॥ मानवीजीवन सुफळ होण्या। मार्गदर्शन पाहिजे प्राण्या। नरदेहा उध्दरण्या। गुरू सहाय्य पाहिजे ॥ 9 ॥ आमुचे गुरू महाज्ञानी। चातुर्यशास्त्र चिंतामणी। अनाथनाथा दिनरजनी। मार्गदर्शन करिताती ॥ 10 ॥ गुरूवाय महामंत्र। पुनीत पावन वेदतंत्र। गुरूमुखातील महावाय। जागृतशक्ति तो शब्द ॥ 11 ॥ गुरूमुखे मिळता मंत्र। मंत्रप्रभावे जिवनतंत्र। क्षणात अवधे दैवीसुत्र। मार्ग सुलभ मिळे त्या ॥ 12 ॥ मंत्रप्रभाव शिष्यावरी। वरदहस्त भक्तशिरी। त्या विभूतिची अगाधथोरी। स्वानुभवाविण ना कळे ॥ 13 ॥ अनुग्रह देती गुरूमुर्ति। मार्गदर्शन शिष्या करिती। मार्गक्रमण भक्ताप्रति। स्वये करावे लागते ॥ 14 ॥ कैसी करावी साधना। नियम व्रत उपासना। ते मार्गदर्शन गुरूराणा। गुप्तरूपे भक्ता करिती ॥ 15 ॥ साधनामार्ग गुरू कथिती। ती करावी लागे भक्ताप्रति। गुरू तयास योग्य। जागृती देती सदोदीत ॥ 16 ॥ गुरू शिष्यास करिती साकार। योग्यरिती निरंतर। मात्र शिष्यास निरंतर। कष्ट व्यथा विघ्ने फार ॥ 17 ॥ सांभाळूनि मनाचा तोल। धारिष्टय सबळ असो द्यावे। जीवनी परिक्षा अनमोल। उत्तीर्ण होणे भाग असे ॥ 18 ॥ गुरूउपदेशा नंतर। साकार रूप भक्त थोर। सत्याचरण सत्कर्म। सद्विवेक बुध्दि जाण ॥ 19 ॥ सुविचारा सबळस्थान। गुरूकृपेने होत असे। अनुग्रहिताचा जीवनक्रम। सहजसुलभ आनंदपूर्ण ॥ 20 ॥ सत्य सत्य हे शास्त्रवचन। मार्गदर्शना गुरू सगुण। भक्तीभाव आचरण। गुरूचरणी श्रध्दापूर्ण ॥ 21 ॥ सद्गति त्या शिष्याप्रत। आदेशाचे पालन करीत। जिवनक्रम सुलभ नित्य। शिष्य सुखी जीवनी ॥ 22 ॥ गुरूआज्ञेचे उंघन। न करावे कदापि जाण। गुरूआज्ञा भंग पातकाने। अधोगति शिष्यास ॥23 ॥ म्हणुनि जीवनी सावध। नित्य असावे सेवारत। नम्रभाव सदोदीत। वचनी श्रध्दा असावी ॥ 24 ॥ गुरू शिरावरी शिष्यभार। सद्गतीस जबाबदार। नैतिकरिती व्यवहार। गुरूशिष्य परंपरा ॥ 25 ॥ गुरूआज्ञेची प्रतारणा। शिष्य स्वकर्मे जाणा। अधोगतीस दिनवाणा। प्राप्त होई कर्मयोगे ॥ 26 ॥ ह्याचा दोष नव्हे गुरूस। गुरू नव्हे वाहन खास। गुरू मार्गदर्शक सत्य। शिष्ये मार्ग चुकू नये ॥ 27 ॥ माझे सद्गुरू श्रीराम। भक्तजीवा आराम। सर्वसुखाचे शांतीधाम। अवतरले कलियुगी ॥ 28 ॥ गुरूसत्ता अगाध थोर। तरूनी जाण्या भवसागर। सुकाणुसहीत नौका सुकर। मानवप्राण्या संसारी ॥ 29 ॥ जय जय श्रीसद्गुरूनाथा। परम कृपाळू दयावंता। अनाथनाथा भगवंता। तूच थोर त्रिभुवनी ॥ 30 ॥ राम गुप्त राहूनि अवनी। सांभाळी भक्त दिनरजनी। कर्तव्य श्रेष्= ध्येय जिवनी। शिकवण भक्ता अनमोल ॥ 31 ॥ मार्ग क्रमता भक्तराज। त्यास रक्षिती सद्गुरूनाथ। ते कार्य नित्य रोज। अखंड करिती गुरूनाथ ॥ 32 ॥ संत दयेचे सागर। प्रेमामृत निरंतर। प्राशविता भक्ता थोर। पुर्नजन्म नसे तया ॥ 33 ॥ यापुढिल अध्यायी। यज्ञयागाची महति पाही। कथन करिती गुरूआई। श्रवण करावे लवलाही ॥ 34 ॥ सकल जनांच्या कल्याणा। नित्य जागृत योगीराणा। सद्बुध्दि सतप्रेरणा। सकल सृजना देत असे ॥ 35 ॥ इति श्रीरामगुरूचरित्र। परिसा रसाळ इक्षुदंड। विनवी दासी अखंड। अष्टविंशो।ध्याय: गोड हा ॥ 37 ॥
॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
॥अ व धू त चिं त न श्री गु रू दे व द त्त ॥
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