श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 41  वा ॥

॥  श्री गणेशाय नम  :।  श्री  सरस्वत्यै  नम:।  श्री  गुरूभ्या  नम:  ।  जय  जयाजी  पांडुरंगा।  भक्तवत्सल  श्रीरंगा।  तुझ ि अगाध  भेक्तप्रमि।  भक्तलाकिी  गाजतस॥  1॥  भक्तलीलामृत  भक्तगाथा।  भक्तगुणसपरता।  अखंड  श्रीचरणांचा।  सहवास  मागत॥ ि 2॥  श्रीगुरूंचा  ेजव्हाळा।  सुखी  भक्त  स्नहिाळा।  भक्तअंतरीच्या  कळा।  ताेिच  जाण ि कृािळू॥  3॥  दयावंत  श्रीगुरू।  भक्तासाठठ्ठ  अवतारू।  घति  अस ि भूवरू।  त्रयमुेर्त  गुरूदवि॥  4॥  गुरूदत्तात्रय  आद्यी=। ि ेत्रभुवननायक  जगन्नाथ।  व्यासरूि ि प्रकट।  रिंरिा  चालवी॥  5॥  केलयुगाचा  आचार।  भष्ट  झाल ि ेवचार।  ह्ष्ट  भावना  दुराचार।  हेिच  मेहमान  त्याच॥ ि 6॥  रक्षावया  ुण्यिवाना।  अवतार  घर्इि  याेिगराणा।  भेक्तभावार्थेच  जाणा।  ेनत्य  रक्षी  मानवा॥  7॥  भेक्तभावार्थेच  खूण।  गुरूचरणी  हातिा  लीन।  ेन:स्वार्थ  सविा  करून।  स्वानंद  सुख  भागिाव॥ ि 8॥  श्रीगुरूमेहमा  थारि।  करावया  जगदाध्दिार।  गुरू  घतिी  अवतार।  केलयुगी  गौप्यरूि॥ ि 9॥  केलयुगाचा  आचार।  सेवस्तर  केथता  ेवस्तार।  वाढलि  हा  ग्रंथ  फार।  श्रीगुरूचपरत्र  वाचाव॥ ि 10॥  श्रीगुरूंच ि चपरत्र।  साक्षात  त ि रिमुरूिष।  गुरूवाणीन ि सर्वत्र।  मार्गदर्शक  भक्तांना॥  11॥  श्रीगुरूंच ि चपरत्र।  साक्षात  त ि गुरूस्वरू। ि साक्षभावान ि गुरूदत्त।  भक्तांसह  नांदती॥  12॥  गुरू  ह ि शब्द  दानि।  रिममंगल  मंत्र  जाणा।  द्वर्णाक्षरांची  युती  हाऊिन।  महामंत्र  झाला॥  13॥  ग  म्हणज ि अकार।  उकारात्मक  रूकार  दानि।  सगुण  ेनर्गुण  ेनराकार। र् ें्रम्ह  म्हणज ि साक्षात्कार॥  14॥  अज्ञानमय  अंध:कार।  ािविासना  दुराचार।  भस्म  हार्इिल  साचार।  ेकरणसर्शि  सद्गुरूंच्या॥  15॥  ेदव्य  तजि  मंडलाकार।  लखलखाट  सुर्वणाकार।  नयन  ेदतिी  खराखिर।  त ि तजि  ािहता॥  16॥  प्रेदप्त  ह्या  तजिामियी।  प्रकाशाची  प्रभा  ािही।  ुण्यिवान  नरदहिी।  गुरूस्वरूी ि सामावला॥  17॥  त्या  समर्णिाची  गाडिी।  वर्णावया  वाचा  थाडिी।  अवीट  ती  आवडी।  अमृतमयी  हाति  अस॥ ि 18॥  ूवर्िसुकृतावांचून।  नाही  सद्गुरूंच ि दर्शन।  गुरू  चरर्णोुंज  सविकिारण।  सत्प्रवृत्ती  ािेहज॥ ि 19॥  वृत्तीच ि व्हावया  जागरण।  सविाभावाच ि समीकरण।  यथायाग्यि  कृिकिारण।  संतुलन  ािेहज॥ ि 20॥  गुरूेशष्याचा  एधकार।  रिसरिा  अवर्लेंीं  थारि।  सगुण  त ि साकार।  आनंदमयी  करेवल॥  21॥  गुरू  कैवल्याचा  मरूि।  गुरू  हाच  कलतिरू।  गुरूच  करील  ािरू।  या  भवसागरातुनी 

॥  22॥  प्रंचिरूी ि नौका।  तयाचा  वल्हरू  गुरू  सखा।  तयासारीखा  ािठठ्ठ  राखा।  अन्य  नस ि भुवनत्रयी॥  23॥  अन्य  कशास  दुसरी।  एकात्मता  हृदयांतरी।  सूक्ष्मांतरी।  सूक्ष्मरूि ि जाणेत॥  24॥  गुरू  तजिाच ि ेकरण।  महाािाि  करी  भस्म।  त्रयमुेर्त  ता ि ेत्रकालज्ञ।  गुरूमुेर्त  यागिीराणा॥25॥  करावया  जगदाध्दिार।  ेवशाल  ज्याच ि अंत:करण।  प्रत्यक्षरूि ि ेनरंतर।  अवतार  कार्य  करीत  अस॥ ि 26॥  अवतारकार्याची  रिंरिा।  सनकोदक  मुेनवरा।  प्रासोदक  अवतारा।  उदिशिेत  जगद्गुरू  ॥  27॥  जगाचा  व्हावया  उध्दार।  युग  रित्व ि साचार।  साकाररू ि रिमश्विर।  अवतार  ेनत्य  घतिस॥ ि 28॥  ेशवशंकर  ेवश्वंभर।  चक्रवर्ती  भाळिा  ेदर्गेंर।  त्रयमुेर्त  ेत्रगुणाकार।  अवतरल ि गुप्तरूि॥ ि 29॥  कलीयुग ि गुप्तरूि। ि हिावया  भक्तकौतुक। ि भक्तासव ि सर्वसुख। ि उभिागिू  या  जगी॥  30॥  उभिाेिगता  गुरूकृाि।  आनंदा  ािर  नाही  दखिा।  वळिाविळिी  भक्तसखा।  स्वानंदसुख  ािवतस ि ॥  31॥  गुरूभेक्तचा  मार्ग  सािाि।  शरणांगतीचा  उािय  दखिा।  तयोचया  कृािसुखा।  वाच ि कैस ि वर्णाव॥ ि 32॥  ेवद्यावाचसेित  दवि।  जाणुनी  अंतरीचा  भाव।  सार्वभौम  गुरूदवि।  आज्ञा  करी र् ेंाळकात॥ ि 33॥  केल  झाला  र्प्रेंळ।  मातल ि शत्रू  दुर्जन  खळ।  मानव  झाला  हर्तेंल।  कैस ि वर्ताव ि कळेिचना॥  34॥  जीवनराहटी  दैनेंदन।  कैसा  उगवलि  सुेदन।  के=ण  समय  अंत:काळ।  काळवळि  कळेिचना॥  35॥  या  साठठ्ठ  मानवान। ि अखंड  नाम  चिंताव। ि गुरूचिंतनी  रमाव। ि ेनत्येनत्य  सदाेिदत॥36॥  हातान ि करावा  धंदा  ।  मुखान ि म्हणाव ि गािविंदा।  ेवसर  न  डिावा  कदा।  हेिच  मागण ि गुरूदिी॥  37॥  केलयुगी  नामसाधना।  सर्वश्रष्= ि उािसना।  ेटकवाव ि अनुसंधाना।  ेनत्येनत्य  सद्गुरूंच॥ ि 38॥  ह ि प्रभा ि ेवव्याकिा।  सत्ताधीश  तू  असता।  ओदअंतीचा  तुेच  ेनयंता।  जगद्वंद्य  जगद्गुरू॥  39॥  संतांच्या  सहवास। ि उध्दरतील  मानव  ह। ि तयांच्या  कृािप्रसाद। ि तरतील  भवसिंधू  ॥  40॥  याुेिढल  वृत्तान्त।  ुढिील  अध्यायी  केथन।  सद्गुरूंच ि कार्य  समस्त।  पिरसाव ि तुम्ही  सुजन  हा॥41॥ ि इेत  श्रीरामगुरूचपरत्र।  पिरसा  रसाळ  इक्षुदंड।  ेवनवी  दासी  अखंड।  एकचत्वापरंशा। ि ध्याय  गाडि  हा॥ 

      ॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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