श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय  6  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम  :॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:  ।  श्री  गुरूभ्यो  नम:  ।  मंगलमुर्ति  मोरया  ।  वंदन  तुम्हा  करीते  सदया  ।  विद्यावाचस्पती  गणराया  ।  वक्रतुंडनमन  तुम्हां  ॥  1  ॥  जय  जय  श्री  सद्गुरूनाथा  ।  अत्रितनया  अवधुता  ।  त्रयमुर्ति  सगुणस्वरूपा  ।  शरण  तुम्हां  त्रिवार  ॥2  ॥  अखंड  ध्यास  गुरूभक्तिचा  ।  संतसहवास  जीवनी  साचा  ।  मार्ग  मिळण्या  जीवनमुक्तिचा  ।  गुरूभक्ति  श्रेष्=  असे  ॥3  ॥  गुप्त  अवतार  त्रयमुर्तिचा  ।  अमुल्य  =ेवा  कलियुगी  साचा  ।  हा  कल्पतरू  शांतवी  भता  ।  नरजन्मा  येऊनी  ॥  4  ॥  दोन  तपे  लोट  ली  ।  परी  ओळख  ना  पटली  ।  गणगोता  भांत्र  पडली  ।  अतुल  करणी  ब्रम्हयाची  ॥  5  ॥  चमत्कार  लीला  अगणित  ।  बालपणी  घडल्या  किती  एक  ।  मानवप्राणी  निद्रीस्त  ।  जागृती  नसे  जीवनी  ॥  6  ॥  कैसा  असे  योगायोग  ।  विधिसुत्रॠणानुबंध  ।  घडला  असे  एक  प्रसंग  ।  खामगांवी  असता  व्रतबंध  ॥  7  ॥  होते  बापु  कुलोपाध्याय  ।  व्रतबंधन  विधी  करिता  सोय  ।  अधिक  न्युन  विधित  होय  ।  प्रायश्चित  मिळे  मुळेंना  ॥  8  ॥  होमालागी  लावी  मृत्तिका  ।  वृश्चिकदंश  झाला  देखा  ।  कुलोपाध्याय  हा  हा  म्हणता  ।  हिंडु  लागले  भुमिवर  ॥  9  ॥  होता  व्रतबंध  त्रयमुर्तिचा  ।  परी  कोणा  नसे  सुगावा  त्याचा  ।  अज्ञानी  मानवाचा  । र् हास  होतो  जीवनी  ॥  10  ॥  व्रतबंध  विधी  होता  ।  ब्रम्हचर्याश्रमाची  योग्यता  ।  अवतारकार्य  करण्याकरिता  ।  हा  योग्य  काळ  असे  ॥  11  ॥  चातुर्मासाचे  प्रारंभात  ।  एकोणाविसशे  छप्पवीसात  ।  रामपदार्पण  अकोल्यात  ।  प्रारंभ  होई  जनकार्या  ॥  12  ॥  अकोला  ग्रामाभितरी  ।  आले  फडणिसांचे  घरी  ।  वडिल  राहीले  पांगरी  ग्रामी  ।  माता  भगिनी  जवळ  असती  ॥  13  ॥  अकोला  ग्रामी  होता  स्थिर  ।  घडला  पुढे  चमत्कार  ।  श्रवण  करिता  उध्दार  ।  कलीयुगामाझारी  ॥  14  ॥  मातेसह  दोन  भगिनी  ।  आनंदे  राहती  रामसदनी  ।  वडिल  राहती  पांगरीग्रामी  ।  वतनदारी  कार्य  करण्या  ॥  15  ॥  येथे  कैसे  नवल  घडले  ।  विधीसुत्र  कोणा  न  कळले  ।  रामशरीर  क्षीण  झाले  ।  माता  चिंता  करीतसे  ॥  16  ॥  उपाय  योजिला  गुरूंनी  ।  राहीले  गोमुत्र  प्राशुनी  ।  दोन  महिने  याच  त र् हेने  ।  काळ  क्रमिला  रामराये  ॥  17  ॥  उठेन  रोज  प्रात र् काळी  ।  गोमुत्र  प्राशन  मन  निर्मळी  ।  देहशुध्दि  करूनी  ।  अवतार  कार्य  करण्या  सिध्द  ॥  18  ॥  स्वामी  नृसिंह  सरस्वती  ।  भगवी  वस्त्रे  भगवी  छाटी  ।  अखंड  भ्रमण  भूवरी  ।  जागृत  असती  निरंतर  ॥  19  ॥ 

तीन  रात्री  नवल  घडले  ।  स्वामीदर्शन  रामासी  झाले  ।  प्रत्यक्ष  स्वामी  ठकले  ।  जागृत  करीती  रामास  ॥  20  ॥  पूर्वसुकृत  दिव्यह्ष्टी  ।  गुरूदर्शनी  होई  तृप्ती  ।  रामगुरूसी  येई  प्रचिती  ।  अवर्णनीय  शब्दातीत  ॥  21  ॥  पायी  खडावा  अनुपम  असती  ।  दैदिप्यमान  सगुणमुर्ति  ।  मध्यरात्री  प्रकटती  ।  त्रैमूर्ति  रामापुढे  ॥  22  ॥  प्रथमदिनी  नेत्र  दिपले  ।  रामअंतरी  गडबडले  ।  स्वामींनीही  अभय  दिले  ।  वरदहस्त  =ेवोनी  ॥  23  ॥  ब्रम्हांडाचे  स्तर  समस्त  ।  उपदेशिती  सद्गुरूनाथ  ।  रामगुरू  होती  लीन  ।  पदकमळी  स्वामींच्या  ॥24  ॥  मध्यरात्री  शांतवेळी  ।  कोणासवे  राम  बोलती  ।  माता  मनी  चिंतावली  ।  रामगुरूसी  पुसतसे  ॥25  ॥  राम  सांगती  जननीसी  ।  सद्गुरू  आले  भेटीसी  ।  पुर्णकृपा  करण्यासी  ।  हृदयी  आपूल्या  आलिंगीले  ॥26  ॥  नियमाने  रात्री  तीन  ।  सद्गुरूंनी  दिले  दर्शन  ।  पुढे  करावे  कार्य  अपूर्ण  ।  स्वामी  म्हणती  रामचंद्रा  ॥27  ॥  पूढे  कैसे  नवल  घडले  ।  रामचंद्र  चित्ती  रंगले  ।  दिगंबर  चिंतनी  निमग्न  झाले  ।  समाधी  सुखे  डोलती  ॥28  ॥  ब्रम्हरस  अखंड  प्याले  ।  अंतरी  बहु  तृप्त  झाले  ।  आपपर  भाव  निमाले  ।  कार्य  करण्या  सिध्द  होत  ॥29  ॥  मातेसी  वदती  राम  ।  करू  गुरूचरित्र  पारायण  ।  त्वा  अशिर्वाद  करूनी  ।  आज्ञा  द्यावी  सत्वरी  ॥  30  ॥  माता  वदे  ऐक  रामा  ।  करू  नये  कठठ्ठण  कामा  ।  गुरूचरित्र  व्रतनियमा  ।  पालन  कैसे  होईल  ॥  31  ॥  परी  इच्छा  देखुनी  रामाची  ।  दिली  अनूमती  वाचावयाची  ।  मनीमानसी  मोहरली  साची  ।  वृत्ती  रामगुरूंची  ॥  32  ॥  येता  जैसे  दिवस  जवळी  ।  राम  स्वानंदे  डोलती  ।  दत्त  दिगंबर  चिंतनी  ।  चित्त  रंगले  रामाचे  ॥  33  ॥  आणिला  फोटो  त्रयमूर्तिचा  ।  लाविला  वृक्ष  औदुंबराचा  ।  ग्रंथ  आणुनि  शेजारचा  ।  तयारी  सदनी  केली  असे  ॥34  ॥  मंगळवारी  शुभदिनी  ।  प्रात र् काळी  उठेनी  ।  अतिहर्षे  राम  मनी  ।  प्रारंभ  केला  पारायणी  ॥  35  ॥  सप्ताह  वाचता  सदनी  ।  आनंदी  आनंद  होत  भूवनी  ।  माता  बैसोनी  श्रवणी  ।  सद्गदीत  होत  असे  ॥  36  ॥  यापूढील  चमत्कार  ।  कैसा  घडला  साक्षात्कार  ।  ऐका  तुम्ही  श्रोते  चतुर  ।  कलियुगी  धन्य  अवतारी  ॥  37  ॥  इति  श्रीरामगुरू  चरित्र  ।  परिसा  रसाळ  इक्षूदंड  ।  विनवी  दासी  अखंड  ।  षष्ठेध्याय  गोड  हा  ॥38  ॥ 

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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