श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय  8  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम:॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:।  श्रीगुरूभ्यो  नम:।  मंगलमयगजवंदना  ।  गौरीतनया  यशवर्धना  ।  शमीमुलधारा  ।  असुरमर्दना  ॥1  ॥  कल्पवृक्ष  औदुंबरतळी  ।  अत्रिनंदन  गुरूमाऊली  ।  भक्तरक्षणा  तीन  त्रिकाळी  ।  जागृत  असे  कलियुगी  ॥2  ॥  जरी  दोन  तपे  राहले  गुप्त  ।  बाललीला  झाल्या  अगणित  ।  एकोणवीसशे  छपन्नांत  ।  प्रथम  प्रकटता  सदगुरूनाथ  ॥  3  ॥  शुभ  मासी  मार्गशिर्षात  ।  दत्तजयंतीच्या  सप्ताहात  ।  घडले  चमत्कार  असंख्यात  ।  पुढील  कार्य  वर्णू  आता  ॥  4  ॥  कैसे  घडले  चमत्कार  ।  ऐका  श्रोते  तुम्ही  चतुर  ।  गुरूकृपा  वर्षता  नीर  ।  मानव  होती  भवपार  ॥  5  ॥  श्रीरामाची  चुलतभगिनी  ।  आली  असता  भेटण्यासदनी  ।  अद्भूत  वर्तले  ते  दिनी  ।अकस्मात  आले  त्रयमुर्ति  सदनी  ॥  6  ॥  ती  गर्भवती  नव  मासाची  ।  चिन्हे  नव्हती  प्रसुतिची  ।  अघटीत  करणी  विधीची  ।  अकस्मात  वेळ  आली  प्रसूतीची  ॥  7  ॥  चुलत्यासवे  श्रीराम  ।  टांगा  शोधण्यानिघती  जाण  ।  सदगुरूनाथ  टांगा  घेऊन  ।स्वयंभू  प्रकटले  तत्क्षण  ॥8॥  ेतवारू  भव्य  टांग्याप्रति  ।  टांगा  हाकण्या  त्रैमूर्ति  ।सदनी  आणुनी  सोडिती  ।अह्श्य  होती  क्षणात  ॥  9  ॥  काका  प्रवेशती  सदनांत  ।  टांगा  भाडे  देण्याप्रत  ।  परत  येता  बाहेरी  ।  टांगा  न  दिसे  रस्त्यावरी  ॥  10  ॥  ऐशा  अवतार  गुप्तकथा  ।  वर्णण्या  स्फु  र्ति  देई  आता  ।  धरीले  चरण  घट्ट  आता  ।  तूचि  तारक  अवधूता  ॥  11  ॥  घरांत  भगिनी  बाळंतीण  ।  चिंताग्रस्त  सारेजण  ।  जल  थेंब  एक  नाही  म्हणून  ।  व्याकूळले  सारेजण  ॥12  ॥  रात्र  किर्र  अंधारी  ।  काय  करावे  या  अवसरी  ।  श्रीराम  वदती  भगिनीस  ।  घागर  लाव  नळास  ॥13  ॥  वदे  भगिनी  बंधुप्रत  ।  उगाच  का  सतावत  ।  को=े  च  अकोला  ग्रामांत  ।  जल  नसे  नळाप्रती  ॥14  ॥  श्रीराम  करी  भाष्य  मधुर  ।  तू  लाव  भगिनी  घागर  ।  नळांत  येईल  जल  सत्वर  ।  चालू  कर  क्षणभर  ॥15॥  नवल  घडले  श्रोते  ऐका  ।  घागर  भरूनी  जल  देखा  ।  नळातूनि  आले  त्या  क्षणी  ।  ऐसी  अघटित  गुरूकरणी  ॥  16  ॥  आश्चर्य  करिती  सदनी  ।  थोर  असे  विधीची  करणी  ।  परि  भ्रांत  असे  मानवास  ।  सत्यस्वरूप  ओळखेना  ॥17  ॥  गुरूचरित्रामाझारी  ।  ऐसी  कथा  दत्तावतारी  ।  भतासाठठ्ठ  खरोखरी  ।  वांझ  महिषी  दोहविली  ॥18  ॥  तैसेचि  येथे  वर्तले  ।  चतुर्थावतारी  भले  ।  श्रीरामराये  आणिले  ।  जल  नळामधुनी  ॥  19  ॥  ऐका  श्रोते  सावधान  ।  काय  अशय  सदगुरूलागोन  ।  शुघ्द  भति  श्रध्देवीण  ।  खूण  ओळख  पटेचिना  ॥20  ॥  ऐसा  असे  निसर्गनियम  ।  सुर्यास  नसे  दिपाचे  कारण  ।  तो  स्वयंप्रकाशी  जाण  ।  तम  अंध:कार  नाशवी  ॥21॥  त्यापरी  येथे  सदगुरूनाथा।  ओळख  पटण्या  भक्तत्राता  ।  तो  स्वयेचि  जगत्राता।  भक्त  त्यासी  जाणती॥22॥  परिकलियुगाची  असे  महती।  अहंतेपुढे  न  चाले  कोणाची  गती।  मानव  प्राणी  श्रेष्ट  म्हणविती  ।  अहंकार  मिरविती॥23  ॥  श्रेष्=  असे  कालगती  ।  गुरूदत्तात्रयांची  अगाध  किर्ती  ।  अवतारकार्य  थोर  जगती  ।अंत  नसे  त्या  कल्पांती  ॥24  ॥  त्रैमुर्ति  अवतरले  भूवरती  ।  गुप्तरूपे  नृसिंहसरस्वती  ।  सुजनांस  मार्ग  दाविती।  दिनरजनी  त्रैमुर्ति  ॥25  ॥  प्रियभता  बोध  करीती  ।  पुण्यपावना  रक्षिती  ।  रामरूपे  भूवरती  ।  अंखड  भता  उध्दरती  ॥  26  ॥  कानोकानी  वार्ता  ।  पसरली  क्षण  न  लागता  ।  कुळकर्णी  यांचे  सदना  ।  त्रैमुर्ती  साक्षात  प्रकट  हो॥27  ॥  काही  येती  भाविक  ।  काही  कुटाळ  सुरेख।  दांभिकभाव  सदोदित  ।  मानवप्रकृति  स्वभाव  हा  ॥  28  ॥  अहंपणा  मिरवीती  ।  मी  मी  पणात  बुडती  ।  अंती  नरजन्म  घालविती  ।  वाया  अहम्भावाने  ॥  29  ॥  ऐका  श्रोते  नवल  घडले  ।  दोन  पोलिस  अवचित  आले  ।  वेषांतरात  सदनी  बसले  ।  सत्य  प्रचिती  बघावया  ॥  30  ॥  त्रिकालज्ञ  त्रैमुर्ती  ।  अवधुत  अधिपती  ।  दाविली  चमत्कारगती  ।  दयाळूपणे  गुरूराये  ॥  31  ॥  श्री  नृसिंहसरस्वती  गुरूमूर्ती  ।  भक्तांसाठठ्ठ  गुप्तरूपे  येती  ।  जगदोध्दारा  अवधुत  येती  ।  संदेश  देती  तयांशी  ॥  32  ॥  मानव  जीवनी  येऊनी  देखा  ।  उगाच  प्रचिती  घेऊ  नका।  आम्ही  संन्यासी  यती  देखा  ।  धन-द्रव्य  आम्हा  वर्ज्य  असे  ॥  33  ॥  संदेश  देती  तयांशी  ।  उठेनी  नमावे  गुरूचरणासी  ।  सांडोनी  मनीचे  संदेहासी  ।  शरण  जावे  श्रीगुरूंना  ॥  34  ॥  तेव्हा  काय  घडला  प्रकार  ।  उ=ता  न  ये  सत्वर।  डिकांपरी  जागेवर  ।  चिकटूनिया  बैसले  ॥  35  ॥  मग  गेले  घाबरून  ।  धावा  करिती  कळवळुन  ।  सद्गुरूंना  जाती  शरण।  क्षमा  त्रिवार  मागती  ॥  36  ॥  अतिकोमल  श्रीगुरूंचे  मन  ।  क्षमा  मागता  गेले  विरघळून  ।  तत्क्षणी  माया  काढुन  ।  नमस्कारा  करविती  ॥  37  ॥  अहंकार  टाकून  शरण  आले  ।  पोलिस  जे  हो  होते  आले  ।  संदेह  मनीचे  निमाले  ।  चरण  धरिती  क्षणोक्षणी  ॥  38  ॥  अत्रिनंदन  आले  भुवरी  ।  मनी  शंका  न  धरी  ।  शंकाच  बुडवी  भवसागरी  ।  जाण  सत्य  भक्तराया  ॥  39  ॥  कलियुगी  भक्तत्राता  ।  त्रैमूती  जगत्पिता  ।  अनेक  रूपे  धरूनी  तत्वता  ।  भक्तजना  उध्दरती  ॥  40॥  साक्षात  नृसिंहसरस्वती  ।  भक्तासाठठ्ठ  भुवरी  नांदती  ।  याची  भ्रांत  असे  मानवाप्रति  ।  गुप्त  अवतार  सद्गुरूंचा  ॥  41  ॥  याचे  निरसन  गुरूवर्ये  ।  कित्येक  वेळा  केले  साजिरे  ।  परी  मानवजीवा  साकडे  ।  का  पडत  असे  न  कळेचि  ॥  42  ॥  यापुढील  कथा  सुरस  ।  ऐका  श्रोते  सावकाश  ।  गुरूचरणी  स्थिर  चित्त  ।  =ेवा  भक्तिभावाने  ॥  43  ॥  इति  श्रीरामगुरू  चरित्र  ।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड  ।  विनवी  दासी  अखंड  ।  अष्टमो।ध्याय  गोड  हा  ॥  44  ॥ 

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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