श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 12  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम:॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:।  श्रीगुरूभ्यो  नम:।  जय  जय  गुरूदत्तात्रेया।  अनुसया  सुता  अत्रीतनया  ।  नमन  तुम्हा  त्रिवार  ॥  1  ॥  जरी  दिसती  मानव  रूप।  तरी  साक्षात  ब्रम्हस्वरूप।  सगुण  निर्गुण  एकरूप।  रामराया  सत्य  तू  ॥  2  ॥  परी  मानवा  असे  भ्रांत।  मायामोह  पाशात।  भ्रमण  करीतो  जीव  सत्य।  सद्गुरूकरीती  मुक्त  तया  ॥  3  ॥  नवविधा  भक्तीमाजी।  गुरूभक्ती  श्रेष्=  आजी।  प्रपंचमार्गी  राहूनी  जगी।उध्दारगतीमानवा॥4॥रामचंद्राजगत्पित्या।  चराचरी  तवसत्ता।  प्रिय  कन्या  तारी  आता।  मायबापा  दयाळा  ॥  5  ॥  जय  जय  श्री  अत्रितनया।  सरस्वती  सुता  रामराया  ।  भाग्यवतीकांत  सदया।  शरण  तुम्हां  त्रिवार  ॥  6  ॥  जय  जय  श्री  अवधूता।  भक्तवत्सल  जगत्पिता।  अगाध  आहे  तुझी  सत्ता।  भक्त  प्रिया  दिगंबरा  ॥  7  ॥  दत्तदिगंबरा  अवधूता।  तवचरणी  =ेवूनी  माथा।  अनन्य  भावे  शरण  आता।  कृपा  करी  गुरूदेवा  ॥  8  ॥  श्रीरामचंद्रा  करूणा  करा।  अंतरी  ध्याते  भक्त  प्रियकरा।  दिनानाथा  शरणांगता।  भवपार  करीगा  ॥  9  ॥  श्रीरामस्वरूपी  माझे  ध्यान।  स्थीर  होवो  माझे  अस्थिर  मन।  जीवनमुक्ती  साधन  ।  गुरूचरण  सेवा  घडो  ॥  10  ॥  मु=मारणे  प्रकार।  कैसा  घडला  चमत्कार  ।  गुरूसत्ता  अगाध  थोर।  मागील  अध्यायी  कथियेले  ॥  11  ॥  अमरावतीस  गुरूवारी।  पुजा  आरती  अढावतकरांचे  घरी।  संतसेवा  होती  दैवी।  आवड  अध्यात्म  विषयाची  ॥12  ॥  अनेकांनी  दर्शन  घेतले  भाग्य  त्यांचे  थोर  होते।  पूर्वपुण्य  फळा  आले।  महिमा  अगाध  सद्गुरूंचा  ॥13  ॥  आता  ऐका  सावचित्त।  रामचंद्र  असता  छिंदवाडयात।  कैसे  घडले  अघटीत।  पुढील  कथा  एैकावी  ॥  14  ॥  राहात  असता  नातू  सदनी  ।  औदुंबर  लावीला  गुरूंनी।  ज्ञाुंच्डीत  होता  बहरूनी।  गुरू  सहवासे  वाढ  तसे  ॥  15  ॥  मे  महिना  भर  उन्हाळा।  पाणी  घालणे  वृक्षाला।  सुशिला  करी  नित्यनियमाला।  वृक्ष  झाला  टवटवीत  ॥  16  ॥  पुढे  काय  वर्तले।  विधी  सुत्र  कोणा  न  कळे।  औदुंबर  दुखावले।  सुशिला  कष्टी  होतसे  ॥  17  ॥  त्रयमूर्ति  त्रिकालज्ञ।  रामचंद्र  येता  परतून।  औदुंबर  सुकला  बघुन।  दु:खी  झाले  अंत:करण  ॥18  ॥  येता  प्रथम  गुरूवार।  काय  वदले  गुरूवर।  'जेथे  आम्ही  प्रकटलो।  तेथेची  आम्ही  दुखावलो'  ॥  19  ॥  ज=राग्नी  तप्तझाला।  दाह  शरीरी  भडकला।  शांत  करावे  तयाला।  तेल  हळद  लावूनी  ॥  20  ॥  ते  दिवसापासूनी।  क्षमा  मागितली  नम्रहोवूनी।  तेल  हळद  वृक्षा  लागूनी।  सुशिला  स्वयेलावीत  असे  ॥  21  ॥  पुढे  होती  दत्तजयंती।  सप्ताह  दिन  जवळ  येती।  प्रथम  दिनी  औक्षवाण  करीती।  सुशिलाबाई  प्रितीने  ॥  22  ॥  तो  नियम  त्यांचा।  अजूनपर्यंत  चालला  साचा।  वरदहस्त  गुरूदत्तात्रयांचा।  त्यांच्या  शिरी  कृपा  छाया  ॥23  ॥  प्रपंच  मार्ग  क्रमतांना।  होती  अनेक  यातना।  याची  शिकवण  भक्तांना।  गुरूमाऊली  देत  असे  ॥24  ॥  द्वितीय  पुत्र  रामगुरूंचा।  श्रीकांत  नामे  दोन  मासांचा।  कर्मभोग  आला  त्याचा  ।  बाळ  भोगी  कष्टाने  ॥25  ॥  माता  कष्टी  अंतरी।  उपाय  केले  नानापरी।  गुण  न  ये  पुत्रासी।  गत  जन्मीचा  भोग  तो  ॥26  ॥  बाळा  धरीले  सटविने।  जर्जर  केले  व्यथेने  ।  आराधीली  सटवी  माय।  नवस  करूनी  धरीले  पाय  ॥27  ॥  पुजा  अर्चा  फुटाणे  भोपळा।  पुजीली  सटवी  योग्य  वेळा।  दर्शना  नेले  बाळाला।  विपरीत  घडले  ते  स्थळी  ॥28  ॥  अकस्मात  बाळ  झाला।  लुळा।  शक्ति  नसे  हातपायाला।  तो  होता  कुटाळ  करणा।  काय  करील  त्या  औषधपाणी  ॥29  ॥  उपाय  सर्व  खुंटले।  डॉटर  वैद्यांनी  हात  टेकले।  चिंताक्रांत  आप्त  जाहले।  काय  करावे  सुचेना  ॥30  ॥  प्रश्न  करिती  सद्गुरूलागुनी  ।  अनन्यमावे  ारण  जाउनी।  ऐका  श्रोते  सावचित्ता।  काय  वदले  सद्गुरूनाथ  ॥31  ॥  विभूती  न  देवू  आम्ही  त्याशी  परी  रक्षणा  असू  पाठठ्ठशी।  धोका  नसे  जननी  त्याशी।  लाव  विभूती  स्वकरे  तू  ॥32  ॥  त्या  सतीची  योग्यता।  कोणी  वर्णा।  ती  असे  रामचंद्रांची  माता।  अनुसये  सम  योग्यता  ॥33  ॥  गुण  आला  बाळास।  विभुती  स्पर्शता  अंगास।  जगा  शिकविण्या  कर्तव्यकर्मा।  औषधोपचार  केला  जाणा  ॥34  ॥  ऐसा  त्रयमुर्तिचा  अवतार।  भक्ता  उध्दरण्या  भूवर।  मानवरूपे  निरंतर।  जागृत  गुरू  दिनरजनी  ॥35  ॥  एक  कन्या  उस्मानाबादेसी।  विषप्रयोग  झाला  तियेशी।  दुधामधुनी  झाला  असे।  चिंता  जनक  जननीसी  ॥36  ॥  औषधोपचार  अहर्निशी।  दाखविते  झाले  तज्ञांशी।  वैद्यांनी  टेकीले  हात।  रोग  निदान  करण्याप्रत  ॥37  ॥  चिंता  पित्याचे  अंतरी।  शोधिले  नाना  धन्वंतरी।  शेवटी  येता  अकोला  नगरी।  किर्ती  ऐकली  सद्गुरूंची  ॥38  ॥  घेवूनी  आले  कन्येप्रती।  =ेवीले  गुरूचणांवरती।  सद्भावना  गुरूभक्ति।  फळा  आली  त्यांची  ॥39  ॥  कन्येस  रक्षिले  सद्गुरूनाथे।  विभूती  देवूनी  काढीले  विषाते।  गुरू  वरदहस्त  शिरी  तियेच्या।  धन्य  धन्य  गुरूकृपा  ॥40  ॥  त्रिभूवनी  अखंड  भ्रमण।  जग  उध्दरण्या  कारण।  नरसिंह  सरस्वती  गुप्तपणे।  साक्षात  जागृत  भूवरी  ॥41  ॥  त्या  जागृतीचे  वर्णन।  कैसे  करावे  कन्येने।  अज्ञानी  मानवाने।  गुरूमुखेची  श्रवण  करा  ॥42  ॥  आज  दिनापर्यंत।  कितीएक  चमत्कार  अगणित।  रक्षिले  सद्गुरूनाथे  अनेक।  दु:खी  जीवा  भवसागरी  ॥43  ॥  अथांग  आहे  गुरूकृपासागर।  वर्णण  करण्या  कठठ्ठण  फार।  शांत  धीरगंभीर।  स्वरूप  चित्ती  आ=वा  ॥  44  ॥  ऐसाच  दुसरा  प्रकार।  विषबाधेचा  साचार।  श्रवण  करा  श्रोते  चतुर।  अबलेस  सुखी  केले  गुरूवर्य  ॥45  ॥  अकोट  नामे  ग्रामात।  देशमुख  घराण्यात।  द्वारकाबाई  नामे  सत्य।  अबला  होती  नांदत  ॥46  ॥  श्रोते  त्या  अबलेस।  विषबाधा  अवीसात।  कण  एक  अवीस  पचेना।  व्यथेने  झाली  जर्जर  ॥47  ॥  कठठ्ठण  प्रसंग  दुर्धर।  काय  करावे  कळेना।  होते  तियेचे  पुर्वसुकृता।  भेटले  तियेसी  सद्गुरूनाथ  ॥48  ॥  लीन  होउनी  चरणाप्रत।  गुरूमहाराज  समाधीत।  प्रश्न  करिता  तियेस।  रक्षिले  हो  सद्गुरूंनी  ॥49  ॥  विभूती  देउनी  सत्वरी।  विषबाधा  ज=  रातली।  नष्ट  केली  तत्क्षणी।  धन्य  धन्य  सद्गुरू  ॥50  ॥  धन्य  धन्य  गुरूची  सत्ता।  शांत  वाटले  तियेचे  चित्ता।  कलियुगी  भक्त  रक्षणा।  अवतरला  योगीराणा  ॥51  ॥  गुप्तपणे  जनकल्याणा।  अखंड  जागृत  योगीराणा।  अनेक  प्रसंग  अगणित।  कितीएक  तरले  जीव  असंख्या  ॥52  ॥  कैसे  वर्णावे  अनेक।  मती  चालेना  मानवाची।  यापुढील  अध्यायी।  पिशाश्च  बाधेची  नवलाई  ॥53  ॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इंक्षुदंड।  विनवी  दासी  अखंड  ।  द्वादशो।  ध्याय  गोड  हा  ॥ 

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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